मदर्स डे ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जॉर्विस द्वारा समस्त माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए तथा विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए आरंभ किया गया था। यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता हैं। इस दिन कई देशों में विशेष अवकाश घोषित किया जाता है। कुछ विद्वानों का दावा है कि मां के प्रति सम्मान यानी मां की पूजा का रिवाज पुराने ग्रीस से आरंभ हुआ है। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था। यह दिन त्योहार की तरह मनाने की प्रथा थी।
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एशिया माइनर के आस-पास और साथ ही साथ रोम में भी वसंत के आस-पास इदेस ऑफ मार्च 15 मार्च से 18 मार्च तक मनाया जाता था। यूरोप और ब्रिटेन में मां के प्रति सम्मान दर्शाने की कई परंपराएं प्रचलित हैं। उसी के अंतर्गत एक खास रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता था। जिसे मदरिंग संडे कहा जाता था। मदरिंग संडे फेस्टिवल, लितुर्गिकल कैलेंडर का हिस्सा है। यह कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे संडे, लेंट में चौथे रविवार को वर्जिन मेरी और 'मदर चर्च' को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता हैं। परंपरानुसार इस दिन प्रतीकात्मक उपहार देने तथा मां का हर काम परिवार के सदस्य द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है।
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अमेरिका में सर्वप्रथम मदर डे प्रोक्लॉमेशन जुलिया वॉर्ड होवे द्वारा मनाया गया था। होवे द्वारा 1870 में रचित "मदर डे प्रोक्लामेशन" में अमेरिकन सिविल वॉर (युद्घ) में हुई मारकाट संबंधी शांतिवादी प्रतिक्रिया लिखी गई थी। यह प्रोक्लामेशन होवे का नारीवादी विश्वास था जिसके अनुसार महिलाओं या माताओं को राजनीतिक स्तर पर अपने समाज को आकार देने का संपूर्ण दायित्व मिलना चाहिए। 1912 में एना जॉर्विस ने सेकंड संडे इन मई फॉर 'मदर्स डे' को ट्रेडमार्क बनाया और मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन का गठन किया। आधुनिक मातृ दिवस का अवकाश ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा समस्त माताओं तथा
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मातृत्व के लिए खास तौर पर पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान देने के लिए आरम्भ किया गया था। 8 मई, 1914 को राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को एक संयुक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया, जिसे मदर्स डे के रूप में मनाया गया। यह दिवस अब दुनिया के हर कोने में अलग- अलग दिनों में मनाया जाता हैं। जैसे कि पिताओं को सम्मान देने के लिए पितृ दिवस की छुट्टी मनाई जाती हैं, उसी तरह मातृ दिवस की भी छुट्टी होती है। यह छुट्टी अंततः इतनी व्यवसायिक बन गई कि इसकी संस्थापक, एना जार्विस, तथा कई लोग इसे एक "होलमार्क होलीडे", अर्थात् एक प्रचुर वाणिज्यिक प्रयोजन के रूप में समझने लगे।
एना ने जिस छुट्टी के निर्माण में सहयोग किया उसी का विरोध करते हुए इसे समाप्त करना चाहा। मातृ दिवस माता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है । एक मां का आँचल अपनी संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता। माँ का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि माँ अपने बच्चे की खुशी के लिए सारी दुनिया से लड़ लेती है। एक मां का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है, एक मां बिना ये दुनियां अधूरी है। मातृ दिवस मनाने का प्रमुख उद्देश्य मां के प्रति सम्मान और प्रेम को प्रदर्शित करना है भी है। अधिकांश देशों में, मातृ दिवस हाल ही में पालन की गयी छुट्टियों से व्युत्पन्न है जो उत्तरी अमेरिका और यूरोप में विकसित हुई है।
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जब यह अन्य देशों और संस्कृतियों के द्वारा अपनाया गया था तब इसे दूसरा अर्थ दिया गया। जो अलग घटनाओं (धार्मिक, ऐतिहासिक या पौराणिक) से जुड़े थे और अलग-अलग तारीख या तारीखों पर मनाये जाते थे। कुछ देशों में पहले से ही मातृत्व का सम्मान करने के लिए समारोह था और उन्होंने समारोह का पालन करने के लिए अपनी स्वयं की मां को गुलनार फूल और अन्य उपहार देने जैसी कई बाहरी विशेषताएं अमेरिकन छुट्टियों से ली गयीं। विभिन्न देशों में इस समारोह को मनाने का अपना-अपना तौर-तरीका हैं। कुछ देशों में अगर मातृत्व दिवस के उपलक्ष्य पर अपनी मां को सम्मानित नहीं किया गया तो यह अपराध माना जाता हैं।
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कुछ देशों में, यह एक छोटे से प्रसिद्ध त्योहार के रूप में मनाया जाता हैं। भारत में मातृ दिवस की खास परम्परा हैं। भारत में पृथ्वी को भी मां की संज्ञा दी जाती है व भारत में माता की भगवान स्वरूप में भी पूजा की जाती है इसलिए भारत में मातृ दिवस भी खास महत्व रखता है। इस वर्ष का मातृ दिवस बेहद ख़ास होने वाला है क्योंकि सच्चे मायनों में यह तभी माताओं को ख़ुशी देता है जब बच्चे उनके साथ होते हैं और उनकी किसी भी काम में सहायता करते हैं। लॉकडाउन के मौके पर बच्चों को अपनी माताओं के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मिलेगा।
यह इसलिये भी खास है क्योंकि आम तौर पर बच्चे और बड़े भी, बाजार से कोई गिफ्ट खरीद उन्हें लुभाने का प्रयास करते हैं जो की इस बार काम नहीं आने वाला। तो जो भी करना है बच्चों को खुद ही सोच कर करना है और यह वाकई माताओं के लिये मजेदार रहने वाला है। लॉकडाउन का एक फायदा तो यह जरुर हुआ है की हर कोई यह समझ पाया की हमारी माताएं कितना काम करती हैं और हमारे ख़ुशी के लिये कितनी मेहनत करती हैं। हर जगह लॉक डाउन स्पेशल मातृ दिवस का बेसब्री से माताओं और बच्चो दोनों को इंतज़ार है। कुछ बच्चे कुछ अच्छा पका कर, तो कुछ अपने कौशल का प्रयोग कर नाच-गा कर अपनी माँ को खुश करने की तैयारी में लगे हुए हैं।
रिपोर्ट- बलिया ब्यूरो लोकेश्वर पाण्डेय