"दूसरे देशों ने इसे मान्यता दे दी, लेकिन अपने देश में भोजपुरी भाषा हक हासिल करने के इन्तजार में, भारत से अलग मारीसस की पहल पर युनेस्को ने भोजपुरी संस्कृति के "गीत गवनई" को दिया सांस्कृतिक दर्जा"
खबरें आजतक Live |
रतसर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। आबादी की बीच दुनिया की बड़ी बोली जाने वाली भाषाओं में भोजपुरी शुमार है। भोजपुरी इलाके से जुड़े लोग जहां भी गए। अपनी संस्कृति को बरकरार रखा है। भारत की अन्तर्राष्ट्रीय भाषा को संवैधानिक दर्जा मिले, इसके लिए पांच दशक से लोग आस लगाए है। रविवार को जनऊ बाबा साहित्यिक संस्था "निर्झर" के तत्वाधान में हनुमत सेवा ट्रस्ट जनऊपुर के परिसर में "अन्तर्राष्ट्रीय भाषा को संवैधानिक दर्जा कब" विषयक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर शिक्षाविद प्रेम नारायन पाण्डेय ने कहा कि भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलाने के नाम पर राजनीति खूब होती है। दूसरे देशों ने इसे मान्यता दे दी,लेकिन अपने देश में भोजपुरी भाषा हक हासिल करने के इन्तजार में है। आर्किटेक्ट गणेश पाण्डेय ने बताया कि भोजपुरी फिल्म इन्डस्ट्रीज का आज पूरी दुनिया में बोलबाला है।
देश के पहले राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद के कहने पर 1963 मे भोजपुरी की पहली फिल्म "गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो" बनी थी। लेकिन अफसोस कि अब तक यह आस पुरी न हो सकी। पूर्व एसडीओ इं. तारकेश्वर पाण्डेय ने बताया कि भारत से अलग मारीसस की पहल पर युनेस्को ने भोजपुरी संस्कृति के "गीत गवनई" को सांस्कृतिक दर्जा दिया। लेकिन केन्द्र की सरकारों ने कभी कोई ठोस प्रयास नही किया। डायट के पूर्व प्रवक्ता दिवाकर पाण्डेय ने कहा कि भोजपुरी हर उस मानक पर खरा उतरती है जो आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए जरूरी है। इससे कम संख्या बल वाली भाषाएं दर्जा पा चुकी है। फिर भोजपुरी के साथ सौतेलापन क्यों। संवैधानिक दर्जा पाना भोजपुरी का हक है। गोष्ठी में हदयानन्द पाण्डेय, राधेश्याम पाण्डेय, करीमन राम, शिव प्रसाद पाण्डेय, राजदेव पाण्डेय सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वैद्यराज कवि डा० परमहंस पाण्डेय एवं संचालन धनेश पाण्डेय ने किया।
रिपोर्ट- संवाददाता अभिषेक पाण्डेय