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यूपी पंचायत चुनाव 2021: क्या नई आरक्षण सूची आने के बाद बदल जाएंगी ग्राम प्रधान और बीडीसी सहित सभी आरक्षित सीटें, आइए जानें जानकारों की राय

"आरक्षण आवंटन पर हाईकोर्ट का फैसला करने वाला है बड़ा उलटफेर, 60 प्रतिशत या इससे भी अधिक सीटें हो सकती हैं प्रभावित"

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आगरा (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। पंचायत चुनाव के आरक्षण आवंटन पर हाईकोर्ट का फैसला बड़ा उलटफेर करने वाला है। जिस व्यवस्था के तहत पिछला चुनाव हुआ था, उसी के तहत मौजूदा चुनाव भी कराया जाएगा। जानकारों की मानें तो आगरा जिले में पंचायत अध्यक्ष से लेकर प्रधानी तक का नजारा पूरा बदल जाएगा। 60 प्रतिशत या इससे भी अधिक सीटें प्रभावित हो सकती हैं। जानकारों के मुताबिक 2015 का चुनाव 2011 की जनसंख्या के आधार पर हुआ था। हाईकोर्ट ने आदेश के बाद यही व्यवस्था लागू रखनी है। यानि जनसंख्या का आधार वही रहेगा। ऐसा होने पर पिछले चुनाव में जितनी भी सीटें आरक्षित थीं, बदली जा सकती हैं। कुछ सीटें यथावत भी रह सकती हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं होगी। जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर, क्षेत्र पंचायत, ग्राम पंचायत और प्रधानों की सीटों पर भी असर पड़ेगा। हाल में ही जारी किए गए आरक्षण आवंटन से भी बड़ा उलटफेर हो सकता है। चुनावी मैदान के पुराने दिग्गजों की मानें तो 60 प्रतिशत या इससे भी अधिक बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं। यानि बीते आवंटन में जिन्होंने तैयारी शुरू कर दी थी, उनके सपनों पर ग्रहण लग सकता है। नई प्रक्रिया में उनकी सीट खिसक सकती है। बदलाव के बबाद खुश होने वालों के लिए भी मुश्किल घड़ी है। आने वाले समय में उनकी तैयारियां भी धरी रह सकती हैं। सबसे तगड़ी चोट धन की लगने वाली है। आवंटन के बाद उम्मीदवार दिल खोलकर खजाना खर्च कर रहे थे। अब इनकी धड़कनें तेज हो गई हैं।

आपत्तियों की भी बढ़ेगी तादाद-
जितना अधिक बदलाव, उतनी अधिक आपत्तियां। प्रशासन का बीते दिनों आईं आपत्तियों से पीछा छूटा नहीं था। अब नए सिरे से फिर कवायद करनी होगी। आरक्षित सीटों की तय संख्या और 2011 की जनगणना के हिसाब से फिर आरक्षण तय करना पड़ेगा। यह भी आसान काम नहीं है। सूची का प्रकाशन करके फिर आपत्तियां मांगी जाएंगी। इनका निराकरण करके अंतिम सूची का प्रकाशन किया जाएगा। यानि आने वाले दिन प्रशासन के लिए बेहद चुनौती भरे होंगे। 

दावेदारों के घर पसर गया सन्नाटा-
आरक्षण आवंटन के बाद दावेदारों ने तैयारियां तेज कर दी थीं। घरों या कार्यालयों पर लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी। सीट तय होने के बाद पोस्टर और बैनर लग गए थे। प्रत्याशियों के लिए मेहनत करने वालों के खानपान के लिए तंदूर चलने लगे थे। कोर्ट का आदेश आने के बाद सब कुछ बदल गया। दावेदारों के घरों पर सन्नाटे पसरे पड़े हैं। रौनक चली गई है। खर्च हुए पैसों का हिसाब-किताब लगाया जा रहा है। नई प्रक्रिया में सीट बदलने का डर भी सभी को सता रहा है। 

एक सीट का कई पर असर-
जानकारों की मानें तो एक सीट बदलने का असर कई सीटों पर पड़ता है। प्रत्याशी इधर से उधर हो जाते हैं। पदों पर भी सुविधानुसार बदलाव कर लेते हैं। यानि संभावित उम्मीदवार चुनाव लड़ने की सभी तरकीबें अपनाने को तैयार रहते हैं। देहात की राजनीति भी आरक्षण के हिसाब से चलती है। इससे कई दूसरी सीटों पर फर्क पड़ना स्वाभाविक है। पूर्व प्रधान विष्णु की मानें तो एक साथ सभी सीटों पर चुनाव कराने पर भी दूसरी कई सीटों पर असर पड़ सकता है। योगेश यादव, जिलाध्यक्ष प्रधान संघ आगरा कहते हैं कि अभी इस मसले पर कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगी। सिर्फ इतना समझ में आया है कि 2015 में जो चुनाव का आधार था, वही रहेगा। यानि एक बार फिर नए सिरे से आरक्षण का आवंटन होना है। इसमें मानक क्या रहेंगे, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। नए शासनादेश आने के बाद ही इससे पर्दा हटेगा। 

रिपोर्ट- आगरा डेस्क

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