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आखिर क्या हैं प्रधानमंत्री मोदी की 'थाली-ताली' बजाने की अपील का राज, आइये जानें इस अपील का आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक महत्व


नई दिल्ली (ब्यूरों) तेजी से फैल रहें कोरोना वायरस से सतर्क रहने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरूवार को राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए देशवासियों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने लोगों से कोरोना के बचाव और जागरूकता फैलाने के लिए सहयोग मांगा। साथ ही प्रधानमंत्री ने रविवार को जनता कर्फ्यू का पालन करने का अनुरोध भी किया। 22 मार्च को जारी जनता कर्फ्यू में सुबह 7 बजे से लेकर रात 9 बजे तक लोगों को घर से बाहर न निकलने की अपील की गई है। इस बीच पीएम मोदी ने लोगों से ये भी कहा कि वो 22 मार्च के दिन अपने-अपने घरों में से ही ताली बजाकर, थाली बजाकर, घंटी बजाकर, शंख बजाकर एक-दूसरे का आभार जताएं और इस कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एकजुटता दिखाएं। पीएम मोदी की इस अपील के बाद तुरंत बाद ही सोशल मीडिया पर 'थाली-ताली' बजाना आलोचना का मुख्य कारण बना तो वहीँ दूसरी तरफ कुछ लोगों ने इस पहल की जमकर तारीफ भी की।
इस बारे में कुछ का कहना था कि ये दरिद्रता की निशानी है और पीएम सुविधाओं को बढ़ाने की बजाय ढ़ोंग करवा रहे हैं जबकि कुछ ने इसे ध्वनी पैदा कर बीमारी को भगाने का आयुर्वेदिक, धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताया है। इन सबके बीच लोग असमंजस है कि सही क्या है, तो आइए इस बारे में हम आपको विस्तार से बता देते हैं.। भारतीय सनातन धर्म और आयुर्वेद की माने तो वातावरण में ध्वनी पैदा करना न सिर्फ व्यक्ति के आसपास के वातावरण को बल्कि व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक शक्ति को मजबूत बनाता है। ये ध्वनी शंख बजा कर, थाली बजाकर या घंटी बजा कर पैदा की जा सकती है। आयुर्वेद की माने तो घंटियां इस तरह से बनाई जाती हैं कि जब वे ध्वनि पैदा करती हैं तो वो व्यक्ति के दिमाग के बाएं और दाएं हिस्से में एकाग्रता पैदा करती हैं। जो मानव शरीर के सभी सात उपचार केंद्रों को सक्रिय कर देता है।
जब भी घंटियां बजाई जाती है तब वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो काफी दूर तक जाता है। इस कंपन के कारण ही इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। इसी तरह शंख, घंटी, थाली और चम्मच बजाने से निकलने वाली ध्वनि एक निश्चित आवृत्ति में तेज कंपन ध्वनी पैदा करती हैं, जो कई व्यक्तियों के शारीरिक रूप से अलग-अलग होने बाद भी एक बराबर हो जाती है। यही ऊर्जा शरीर में किसी भी रोग और विषाणुओं से लड़ने की क्षमता पैदा करती है। वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो विज्ञान हमेशा से ही ठोस तथ्यों की तलाश में रहा है। ध्वनी पैदा करने की इस पद्धति में भी विज्ञान ने शोध कार्य और परीक्षणों का सहारा लिया।

नासा के माने तो ध्वनी पैदा करने से खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। जो जीवाणु का नाश कर लोगों में ऊर्जा व शक्ति का संचार करता है। इसमें शंख बजाने को खासा महत्व दिया गया है क्योंकि शंख बजाने से आतंरिक और बाहरी दोनों वातावरण प्रभावित होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे सामने आए हैं। इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख के प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधित होती हैं। शंख-ध्वनि से वातावरण साफ होता है। शंख की आवाज जहां तक जाती हैं वहां तक के वातावरण मे सभी प्रकार के हानिकारक कीटाणुओं का नाश हो जाता है।

रिपोर्ट- नई दिल्ली डेस्क

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