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धर्मकर्म: आइये जाने षष्ठी देवी के उपासना का महापर्व- छठ पूजा का महत्व व प्रासंगिकता


बलिया (ब्यूरों) छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला एक हिंदू पर्व है ।यह मुख्य रूप से छठ माता की उपासना का पर्व है जिसमें डूबते सूर्य व अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । पारिवारिक सुख,समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है । लोक परंपरा के अनुसार सूर्य व षष्ठी माता भाई-बहन है । लोक मातृका षष्ठी की सर्वप्रथम पूजा सूर्यदेव ने ही की थी । शिव पुराण रूद्र संगीता के अनुसार भगवान शिव के तेज से छः मुख वाले बालक का जन्म हुआ जिसका पालन पोषण छः कार्तिकाओं(तपस्विनी नारी) ने किया जिससे वह बालक कार्तिकेय के नाम से विख्यात हुआ । ये छः कार्तिकायें ही षष्ठी माता कहलाती हैं । देवी भागवत पुराण के अनुसार स्वयंभू मनु के संतानहीन पुत्र प्रियव्रत को मणियुक्त विमान से आती हुई एक देवी के दर्शन हुए तो देवी ने बताया कि वह ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं और स्वामी कार्तिकेय की पत्नी है । मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी देवी कहलायी ।वैज्ञानिक स्तर पर भी षष्ठी माता की व्याख्या की गई है । सूर्य की रश्मियों में छः अप्रतिम शक्तियां विद्यमान है - दहनी,पचनी, धूम्रा, कर्षिणी, वर्षिनी ,आकर्षण करने वाली, लोहित करने वाली ,वर्षा करने वाली । भगवान सूर्य की ये छः शक्तियां ही षष्ठी माता कहलाती है । सूर्यषष्ठी-व्रतके अवसर पर सायं कालीन प्रथम अर्घ्य से पूर्व मिट्टीकी प्रतिमा बनाकर षष्ठी देवी का आवाहन एवं पूजन करते हैं। पुनः प्रातः अर्घ्य के पूर्व षष्ठी देवी का पूजन कर विसर्जन कर देते हैं। मान्यता है कि पंचमी के सायं काल से ही घर में भगवती षष्ठीका आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान्‌ सूर्य के इस पावन व्रत में शक्ति और ब्रह्म दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है । इसीलिये लोक में यह पर्व ‘सूर्यषष्ठी’ के नामसे विख्यात है।
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी, पवित्रता और लोक पक्ष है ।भक्ति व अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन आदि व सुमधुर लोकगीतों संयुक्त होकर लोकजीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करती है।

रिपोर्ट- संवाददाता डॉ ए० के० पाण्डेय

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