"हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी वाले दिन मनाया जाता है धनतेरस, यमराज की पूजा के लिए धनतेरस के दिन तेल का जलाया जाता है एक चौमुखा दीपक"
खबरें आजतक Live |
नई दिल्ली (ब्यूरो)। धनतेरस के दिन यमराज की पूजा का क्या विशेष महत्व है। इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं प्रख्यात ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि यमराज की पूजा के लिए धनतेरस के दिन तेल का एक चौमुखा दीपक जलाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं। धनतेरस के दिन यम का दीपक क्यों जलाया जाता है। आज 22 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार आज धनतेरस का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी वाले दिन धनतेरस मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वतरि, भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। साथ ही धनतेरस के दिन यमराज की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। यम को दीप जलाने की परंपरा के बारे में ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि धनतेरस के दिन यम के नाम से दीपदान की परंपरा पुराण काल से चली आ रही है और इस दिन यमराज के लिए आटे का चौमुख दीपक बनाकर उसे घर के मुख्य द्वारा पर रखा जाता है। घर की महिलाएं या मुख्य पुरुष रात के समय इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं।
इस दीपक का मुख दक्षिण दिशा की ओर होता है। दीपक जलाते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ मंत्र का जाप किया जाता है। दीपदान करने के बारे में ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा बताते हैं कि धनतेरस के दिन यमराज के नाम से दीपदान किया जाता है। इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण लेते समय किसी पर दयाभाव आया है। तब वे संकोच में आकर बोलते हैं नहीं महाराज। यमराज ने उनसे फिर दुबारा यही सवाल पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़ बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी जिससे हमारा हृदय कांप उठा था। धनतेरस के दिन दीपदान करने वालों को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। एक बार हेम नामक राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षण गणना करके बताया कि जब इस बालक का विवाह होगा।
उसके चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह जानकर राजा ने बालक को यमुना तट की गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया। एक बार जब महाराज हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी बालक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर दिया। लेकिन विवाह के चौथे दिन ही वह राजकुमार मर गया। पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलख कर रोने लगी और उस नवविवाहिता का विलाप देखकर हमारा यानि यमदूतों का हृदय कांप उठा। तभी एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है। यमराज बोले एक उपाय है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजा करने के साथ ही विधिपूर्वक दीपदान भी करना चाहिए। इसके बाद अकाल मृत्यु का डर नहीं सताता। तभी से धनतेरस पर यमराज के नाम से दीपदान करने की परंपरा पीढिय़ों से चलती आ रही है।
रिपोर्ट- नई दिल्ली डेस्क