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Ballia News: आखिर क्यों विलुप्त होते जा रहे हैं गांवों के पारंपरिक खेल, पहले बरसात शुरू होते ही गांवों में खोद दिए जाते थे अस्थाई अखाड़े

"आधुनिकता की अंधी दौड़ में आधुनिक जिमों नें ले लिया है अखाड़ों की जगह, अब सेहत बनाने के बजाय लोग सिर्फ शरीर सौष्ठव पर विशेष रुप से दे रहे हैं ध्यान"

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रतसर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। आधुनिकता के इस दौर में हमारा समाज कहीं न कहीं अपनी पुरानी परंपराएं व सभ्यताओं को खोता जा रहा है। इसका एक ताजा उदाहरण नागपंचमी का पर्व हैं। पहलें के समय में नागपंचमी के दिन से ही पूरें क्षेत्र के अखाड़ों को तैयार करनें और पारंपरिक शौर्य के प्रदर्शन की तैयारियां तेज हो जाती थी। उन दिनों कुश्ती, कबड्डी, डंबल व गदा फेरने की प्रतियोगिता होती है। इन खेलों में युवा वर्ग तो रुचि लेते ही थे वहीं बुजुर्ग भी पीछे नही रहते थें। पर आज के आधुनिक युग में तमाम पारंपरिक खेल विलुप्त होते जा रहे है। पहले बरसात शुरू होते ही गांव-गांव में अस्थाई अखाड़े खोद दिए जाते थे, जिनमें रोजाना गांव के लोग रियाज करते थे। इसके अलावा ऊंची कूद, कबड्डी, डंबल आदि पर भी लोग हाथ आजमाते रहते थे। नाग पंचमी पर आयोजित दंगल और खेलों में लोगों को अपने मुहल्ले व गांव की टीम को जिताने की होड़ भी लगी रहती थी। इसमें युवाओं के साथ बुजुर्ग भी शामिल हो जाते थे। मगर अब पारंपरिक खेलों की जगह मोबाइल, टीवी एवं कम्प्यूटर ने ले लिया है। इस संबंध में 85 वर्षीय गणेश पाण्डेय बताते हैं कि पहले स्कूलों में नाग पंचमी पर अवकाश होता था। लेकिन अब सरकार ने इसकी परंपरा को ही खत्म कर दिया है। वैसे भी अखाड़ों की जगह अब आधुनिक जिम ने ले लिया है। अब सेहत बनाने के बजाय लोग सिर्फ शरीर सौष्ठव पर विशेष रुप से ध्यान दे रहे हैं, जिसके चलते कहीं ना कहीं हमारी परंपराएं व सभ्यताएं तो प्रभावित हो ही रहीं हैं। वहीं हमारी पुरानी परंपराएं व सभ्यताएं आधुनिकता की अंधी दौड़ में खुद विलुप्त होने के कगार पर आकर खड़ी है।

रिपोर्ट- संवादाता अभिषेक पाण्डेय

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