"चुनाव सुधार की दिशा में काम जरूर हुआ है, पर अब भी इसमें अभी भी हैं सुधार की बहुत जरूरत, ताकि बन सकें एक स्वस्थ व्यवस्था और अपराधी तत्व न पहुंच सकें संसद और विधानसभा, इसके लिए राजनीतिक दलों को भी खुद से करनी चाहिए एक बड़ी पहल"
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लखनऊ (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। अभी पांच राज्यों में चुनावों की प्रक्रिया चल रही है, जिसको देखते हुए राजनीतिक दलों की तरफ से मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए जा रहे हैं। जनता को लुभाने के लिए राजनीतिक दल स्कूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन, बिजली और पानी के बिल में कटौती और नगद कैश देने की पेशकश कर रहे हैं। वहीं चुनाव आयोग नेताओं द्वारा दिये जा रहें ऐसे प्रलोभनों को रोकने में स्वयं को असमर्थ पा रहा है। बता दे कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जिसने केंद्र और निर्वाचन आयोग से इस पर जवाब मांगा है। इस मामले में सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि आखिर राजनीतिक दल मतदाताओं से जो लंबे-चौड़े वादे करते हैं, वह उन्हें कैसे पूरा करेंगे और इसके लिए उनके पास संसाधन कहां से आएंगे। दरअसल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में अब भी कुछ कमियां हैं, जिसका फायदा उठाने में राजनीतिक दल और राजनेता सफल होते रहे हैं। भारत के संविधान निर्माताओं ने हमारी कानूनी व्यवस्था को उदारवादी रूप दिया था, ताकि गरीबों और वंचितों का उत्पीड़न न हो।
परंतु इसका दुरुपयोग किया जाता है और न्याय लंबा खिंचने लगता है। हमारी व्यवस्था की एक बड़ी खामी यह भी है कि आज भी बड़ी संख्या में गंभीर आरोपों में आरोपित भी संसद और विधानसभाओं में आसानी से पहुंच जाते हैं। इसमें चुनाव में दिया जाने वाला प्रलोभन उनकी राह को और भी आसान करता है। दरअसल जरूरत मतदाताओं में जागरूकता फैलाने की है। चुनाव सुधार की दिशा में काम जरूर हुआ है, पर अब भी इसमें सुधार की बहुत जरूरत है, ताकि एक स्वस्थ व्यवस्था बन सके और अपराधी तत्व संसद और विधानसभा में न पहुंच सकें। इसके लिए राजनीतिक दलों को भी खुद से पहल करनी चाहिए। एक स्वस्थ लोकतंत्र में कानून सबके लिए समान होना चाहिए। प्रलोभन और दबाव के दम पर चुनाव जीतने वाले नेता बाद में गलत कार्यों के जरिये इसकी भरपाई भी करते हैं और गैरकानूनी तरीके से अपने व अपने खास लोगों के लिए धन भी एकत्र करते हैं। हैरत नहीं कि दिल्ली की सीमा से लगे नोएडा से लेकर आगरा और आगरा से लेकर लखनऊ तक ऐसे नेताओं की अघोषित जागीरें हैं।
आर्थिक प्रलोभनों के साथ ही राजनीतिक दल सांप्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद के आधार पर लोगों को बांट कर वोट हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि शक्तिशाली राजनेताओं के साथ-साथ बाहुबलियों को भी कानून की पकड़ से बचाने के लिए देश की न्याय व्यवस्था का किस तरह से दुरुपयोग किया जाता है। यह वाकई दुखद है कि जो धन देश के चौमुखी विकास पर खर्च होना चाहिए, वह मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रलोभन के रूप में खर्च हो रहा है। राजनीतिक दलों से सचमुच पूछा जाना चाहिए कि आखिर वे जो मुफ्त में स्कूटी, लैपटॉप, स्मार्टफोन से लेकर मुफ्त में बिजली देने का वादा कर रहे हैं, उसके लिए वह धन कहां से लाएंगे। चुनाव प्रक्रिया में उचित बदलाव किए जाने की जरूरत है, जिससे गंभीर अपराधों में लिप्त अपराधी चुनाव में जीत कर लोकसभा और विधानसभाओं में न पहुंच सकें। इसके लिए संसद को जरूरी हो तो कानून पारित करना चाहिए, ताकि हमारा लोकतंत्र और भी मजबूत हो सके।
रिपोर्ट- विनोद कुमार गुप्ता