"सपा-बसपा में बंटता रहा है मुस्लिम वोट, योगी सरकार के लिए है बड़ा सवाल, कमजोर बसपा से सपा को होगी आसानी"
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लखनऊ (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होंगे। इसके साथ ही बनते-बिगड़ते समीकरणों को लेकर अनुमानों के गुणा-गणित का सिलसिला तेज हो चला है। यूपी में भाजपा के हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण और कमजोर विपक्षियों के बीच मुस्लिम समुदाय का वोट बहुत कुछ तय करेगा। गौरतलब है कि अभी तक मुस्लिमों का वोट मुख्य तौर पर सपा और बसपा के बीच बंटता रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक यह बात 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों में दोनों दलों के बीच गठबंधन ने मुस्लिमों की यह परेशानी हल कर दी थी। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में वोटिंग में बिखराव ने मुस्लिम वोटरों की सीमितता दिखाई थी। हालांकि 2022 के हालात पूरी तरह से अलग हैं। हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ रही योगी सरकार के लिए अल्पसंख्यकों का वोट एक सवाल है। हालांकि पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर मुस्लिम मतदाता भाजपा के लिए मददगार बन सकते थे।
वहीं जातीय समीकरणों वाली कुछ सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय के वोट सपा और बसपा के लिए भी अहम होंगे। हालांकि अगर कहीं से यह महसूस होता है कि भाजपा के लिए समाजवादी पार्टी चुनौती बन सकती है, मुस्लिम समुदाय के यादव वोटरों के साथ जुड़ने के पूरे आसार हैं। बसपा की कमजोर दावेदारी मुस्लिमों के लिए इस फैसले को आसान बना सकती है। अभी तक अखिलेश यादव ने अपनी रैलियों और सोशल मीडिया कैंपेन में भीड़ को दिखाया है। यह बसपा की तरफ छिटक रहे अपने वोटर बैंक को सहेजने की उनकी कोशिश हो सकती है। फिलहाल खुद को सत्ता की दौड़ में बनाए रखने के लिए सपा को अपने फिसलते वोट बैंक को संभालने की बहुत जरूरत है। साथ ही उन्हें एंटी इनकंबैंसी फैक्टर्स को अपने पक्ष में मोड़ना होगा। वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की चुनावी मैदान से अभी तक दूरी भी सपा की इस मुहिम में मदद ही करने जा रही है।
रिपोर्ट- लखनऊ डेस्क