Left Post

Type Here to Get Search Results !

विश्वकर्मा पूजा विशेष: आइये जाने देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती व उनके द्वारा किये गए निर्माण कार्यों की वर्तमान प्रासंगिकता एवं महत्व

image image image image image image image

"हिन्दू धर्म में देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का माना जाता हैं देवता, मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा नें ही किया था सोने की लंका का निर्माण"

खबरें आजतक Live

बलिया (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। इनकी ऋद्धि सिद्धि और संज्ञा नाम की तीन पुत्रियाँ थी जिनमें से ऋद्धि सिद्धि का विवाह भगवान चंद्रशेखर और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र भगवान गणेश से हुआ था तथा संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्यनारायण से हुआ था। यमराज, यमुना, कालिंदी और अश्वनी कुमार इनकी ही संताने हैं। ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है। ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञात नही है। यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है। प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित। परन्तु महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता है।

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी। प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च। विश्वकर्मा सुतस्तस्य शिल्पकर्ता प्रजापतिः। महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है। शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं के आचार्य है। सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है। वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भांजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हैं। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है। वही भगवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। "विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ- व्यंजित होता है।

विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः। अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यापार है वह विश्वकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विश्वरुप विश्वात्मा है। वेदों में "विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात" कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उद्योगों में भगवान विशवकर्मा की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक वर्ष 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रूप मे मनाता हैं। यह उत्पादन- वृदि ओर राष्टीय समृद्धि के लिए एक संकल्प दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है। यह पर्व सोरवर्ष के कन्या संक्रान्ति मे प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विश्वकर्मा- पूजा के रूप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हर्षोल्लास से सम्पन्न होता है। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंती मानते है, जो सर्वदा अनुचित है।

भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर), कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा), भाद्रपद पंचमी (अंगिरा जयन्ति) मई दिवस आदि विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव पर्व है। इन पर्वो पर भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना की जाती है। भगवान विश्वकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पूजा व महोत्सव मनाया जाता है। जैसे भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा इस तिंथि की महिमा का पूर्व विवरण महाभारत मे विशेष रूप से मिलता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना की जाती है। यह शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अन्नकुट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना (औजार पूजा) की जाती है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है। रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रूप मे मनाया जाता है। 5 मई को ऋषि अंगिरा जयन्ती होने से विश्वकर्मा- पूजा महोत्सव मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रूप से सूर्य की ज्योति है। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन वशिष्ठ पुराण मे भी है। "माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ। अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च। धर्मशास्त्र भी माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंती बता रहे है।

अतः अन्य दिवस भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा- अर्चना व महोत्सव दिवस के रूप मे मनाऐ जाते है। इसी तरह भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती पर भी विद्वानों में मतभेद है। भगवान विश्वकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। निःसंदेह यह विषय निर्भ्रम नहीं है। हम स्वीकार करते है प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्ठापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं। श्रुति का वचन है कि विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश आदि कर्यो मे अनिवार्य रूप से विश्वकर्मा-पूजा करनी चाहिए। "विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके। सर्वकर्मसु संपूज्यो विशवकर्मा इति श्रुतम। स्पष्ट है कि विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। अतएव प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना अपनी व राष्ट्रीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए। "जगदचक विश्वकर्मन्नीश्वराय नमः"। चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। कालक्रम में देखें तो सबसे पहले सतयुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका का, द्वापर में द्वारका का और कलियुग के आरम्भ के ५० वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया।

विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण, सुभद्रा और बलराम) का निर्माण किया। हम अपने प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। शिल्पशास्त्रो के प्रणेता बने स्वंय भगवान विश्वकर्मा जो ऋषि रुप में उपरोक्त सभी ज्ञानों का भण्डार है। शिल्पो कें आचार्य शिल्पी प्रजापति ने पदार्थ के आधार पर शिल्प विज्ञान को पाँच प्रमुख धाराओं में विभाजित करते हुए तथा मानव समाज को इनके ज्ञान से लाभान्वित करने के निर्मित पाणच प्रमुख शिल्पायार्च पुत्र को उत्पन्न किया जो अयस, काष्ट, ताम्र, शिला एंव हिरण्य शिल्प के अधिषश्ठाता मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी एंव दैवज्ञा के रुप में जाने गये। ये सभी ऋषि वेंदो में पारंगत थे।

रिपोर्ट- बलिया ब्यूरो लोकेश्वर पाण्डेय

Image   Image   Image   Image  

--- Top Headlines ---



    Post a Comment

    0 Comments
    * Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.