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धर्म-कर्म: आइये जाने माघ संकष्टी चतुर्थी पर्व का महत्व एवं प्रासंगिकता

"सनातन धर्म में प्रथम पूजनीय श्रीगणेश की आराधना करने से सभी कष्टों का होता हैं निवारण, 31 जनवरी को मनाई जा रहीं है संकष्टी चतुर्थी"
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बलिया (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। सनातन धर्म में प्रथम पूजनीय श्रीगणेश की आराधना करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। भगवान गजानन की आराधना विशेषकर बुधवार और चतुर्थी तिथि को करने का विधान है। इस वर्ष सकट चौथ आज 31 जनवरी को मनाई जा रहीं है। वैदिक परंपरा के मुताबिक कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन श्रीगणेश आराधना करने से विशेष फल प्राप्ति होती है। गौरतलब है कि ऐसी ही एक चतुर्थी तिथि माघ महीने की कृष्ण पक्ष के आती है। माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी तिथि को कई नामों से अलग-अलग इलाकों में जाना जाता है। इस मास की चतुर्थी को माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी, संकटा चौथ, तिल चौथ भी कहा जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व को विशेष तौर इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश को तिल चढ़ाने का विधान है। चतुर्थी की कथा का शास्त्रों में कई जगह वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा है कि एक बार देवताओं पर विपत्ति आ गई। 

सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगे के लिए पहुंचे तो उस समय महादेव के साथ कार्तिकेय और गणेश जी भी विराजित थे। देवताओं की समस्या को सुनकर भोलेनाथ से अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों को दूर करना चाहेगा। तब शिवजी के दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश दोनों ने स्वयं को इस कार्य के लिए काबिल बताया। तब भगवान भोलेनाथ ने अपने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेने के लिए कहा कि तुम दोनों में से जो कोई भी पहले धरती की परिक्रमा कर लेगा, वही देवताओं की पहले मदद करेगा। भगवान शिव की बात सुनकर कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन भगवान गणेश चिंतामग्न थे कि अपने छोटे से वाहन चूहे से धरती की परिक्रमा कैसे करें। तभी श्रीगणेश के मन में एक विचार आया और उन्होंने अपने माता-पिता महादेव और पार्वती की साथ परिक्रमा कर ली और चरणों में बैठ गए।

कार्तिकेय जब पृथ्वी की परिक्रमा करके लौट आए और स्वयं को विजेता घोषित करने लगे। तब भोलेनाथ ने श्रीगणेश से परिक्रमा पर न जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक बसे हुए हैं। महादेव श्रीगणेश के उत्तर से बेहद खुश हो गए और उनको देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दे दी और कहा कि जो भक्त चतुर्थी तिथि के दिन गणेश का पूजन करेगा और रात्रि में अर्घ्य देगा। उसको तीनों तरह के दुखों से मुक्ति मिल जाएगी। इस दिन श्रीगणेश की आराधना करने से कष्टों का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। तिल चतुर्थी के दिन गरीबों को तिल गुड़ के लड्डू , कम्बल या कपडे आदि का दान करना चाहिए, जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है। सकट चतुर्थी व्रत को सुहागन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और संतान सुख के लिए व्रत रखती हैं। गौरतलब है कि सकट चतुर्थी व्रत को भी करवाचौथ की तरह निर्जल रखा जाता है। सकट चौथ के व्रत में चांद के दर्शन करने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। जब आपके शहर में चांद के दर्शन हो जाएं तब व्रत तोड़ने चाहिए।

रिपोर्ट- बलिया ब्यूरो लोकेश्वर पाण्डेय

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