बलिया (ब्यूरों) अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य, पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने लॉकडाउन एवं पर्यावरण के अन्तर्संबंधों के संदर्भ में अपना विचार रखते हुए कहा कि वर्तमान समय में लॉकडाउन के प्रभाव से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के सभी तत्व अपने प्राकृतिक परिवेश में विकसित, पुष्पित एवं पल्वित होकर पूरे निखार पर हैं। कोरोना काल में गंगा नदी में प्रदूषण काफी कम हो गया, जल की मात्रा में वृद्धि हो गयी है। जलधारा अविरल एवं प्रवाहमान हो गयी है, जलीय जीवों की संख्या में भी वृद्धि हो गयी है। इस तरह लॉकडाउन में न केवल गंगा, बल्कि सभी नदियों का जल स्वच्छ दिखाई दे रहा है।
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यही नहीं नदियों के अलावा पर्यावरण के जितने भी अवयव (तत्व) हैं, उनको भी लॉकडाउन ने एक नयी संजीवनी प्रदान किया है और सम्पूर्ण पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी इस समयअपने पूरे शबाब पर हैं। वातावरण की स्वच्छता एवं शुद्धता के चलते समय - समय पर इन्द्रदेव भी प्रसन्न होकर वर्षा प्रदान करते हुए सभी वन वृक्षों, झाड़ियों एवं पुष्पों को हरा- भरा करके पुष्पों से सुशोभित कर दिया है। असमय ही पुष्प खिल उठे हैं और अपनी मोहक छटा बिखेर रहे हैं। किन्तु ज्यों ही लॉकडाउन हटेगा, उद्योग धंधे चलने लगेंगे, परिवहन का संचालन होने लगेगा और मानवीय गतिविधियाँ तेज हो जायेंगी, पर्यावरण भी पुनः अपनी पुरानी स्थिति को प्राप्त करता जायेगा।
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पुनः हमारी चिंता बढ़ने लगेगी। तो क्या यह सम्भव नहीं है कि पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने हेतु तथा चीरकाल तक पर्यावरण के कारकों को अक्षुण बनाये रखे जाने हेतु इस लॉकडाउन की प्रक्रिया को हम समय - समय पर लागू करते रहे, ताकि हम पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को सुरक्षित तथा संरक्षित रख सकें। क्या यह नहीं हो सकता कि सरकार समय - समय पर पर्यावरण संरक्षण हेतु भी लॉकडाउन के नियमों का पालन करने हेतु कानून बनाए। धीरे-धीरे यह लॉकडाउन जब हमारे जीवन का अंग बन जायेगा तो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के कारक भी सुरक्षित रहते हुए एवं विकसित होते हुए मानव जीवन को भी सुरक्षित एवं संरक्षित रख सकेंगे और हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।
रिपोर्ट- डॉ ए० के० पाण्डेय