श्री वनखंडी नाथ मठ डूंहा एक बार फिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का बनने जा रहा हैं प्रमुख केंद्र, 40 दिवसीय अद्वैत श्री शिवशक्ति कोटि होमात्मक राजसूय महायज्ञ का हों रहा आयोजन
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बनने जा रहा सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख केंद्र
सिकन्दरपुर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। तहसील क्षेत्र के डुहां स्थित श्रीवनखंडी नाथ मठ एक बार फिर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रमुख केंद्र बनने जा रहा है। आध्यात्मिक शक्ति, भव्यता और भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए प्रसिद्ध यह मठ 11 दिसंबर को कलश यात्रा के साथ शुरू होकर 19 जनवरी तक यानी 40 दिवसीय अद्वैत श्रीशिवशक्ति कोटि होमात्मक राजसूय महायज्ञ का आयोजन करने जा रहा है।
108 यज्ञ कुंड बनकर हों चुका हैं तैयार
राजसूय महायज्ञ के लिए 108 यज्ञ कुंडों का निर्माण हो चुका है। इन कुंडों में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ एक करोड़ आहुतियां दी जाएंगी। इस दौरान इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियों और तिल सहित अन्य सामग्रियों की सुगंध से क्षेत्र का वायुमंडल शुद्ध और सुगंधित हो जाएगा।
कलश यात्रा के साथ शुरू होगा महायज्ञ
महायज्ञ की शुरुआत 11 दिसंबर को भव्य कलश यात्रा के साथ होगी। 12 दिसंबर को मंडप प्रवेश और 13 दिसंबर को अरणी मंथन का आयोजन किया जाएगा। 14 दिसंबर से लेकर 18 जनवरी तक प्रतिदिन पूजन, हवन, कथा, प्रवचन और महाआरती आयोजित की जाएंगी। 19 जनवरी को पूर्णाहुति, अवभृथ स्नान और विशाल भंडारे के साथ महायज्ञ का समापन होगा।
भक्ति रस में डूबाने आ रहें बड़ें बड़े संत
इस ऐतिहासिक आयोजन में देशभर के प्रमुख संत और धर्माचार्य हिस्सा लेंगे। बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री, अनिरुद्धाचार्य, महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद, मानस मर्मज्ञ गौरांगी गौरी समेत अन्य धर्मगुरु भी अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को भक्ति रस के साथ आध्यात्मिक आनंद का भी अनुभव कराएंगे।
मंडपम पर खर्च किए गए हैं करीब 65 लाख रुपए
महायज्ञ के लिए 10 हजार वर्ग फीट क्षेत्र में स्थायी यज्ञशाला का निर्माण किया गया है, जिस पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। हस्तिनापुर के सम्राट महाराजा युधिष्ठिर की तर्ज पर बनाए गए इस भव्य सभा मंडपम पर करीब 65 लाख रुपए खर्च किए गए हैं।
संस्कृति के पुनरुत्थान का साक्षी बनेगा महायज्ञ
यज्ञाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिंह और यज्ञाचार्य पंडित रेवती रमन तिवारी ने बताया कि यह आयोजन भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान और धर्म की स्थापना के लिए आयोजित किया जा रहा है। इस दौरान गुरु-शिष्य परंपरा को भी सहेजते हुए अग्र पूजा की परंपरा निभाई जाएगी। महायज्ञ के माध्यम से भारतीय संस्कृति की गूंज और क्षेत्र में सामाजिक समरसता का संदेश दूर-दूर तक पहुंचेगा।
रिपोर्ट- विनोद कुमार गुप्ता