"उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 140 साल बाद एक बार फिर दूल्हों को नहीं मिली दुल्हन, बारात को लौटना पड़ा बैरंग, अगले साल फिर आने की चेतावनी देकर लौट गए बाराती, कजरी के दिन निभाई जाती है ये परंपरा"
खबरें आजतक Live |
जौनपुर (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। सूबे के जौनपुर में दो गांवों से आई बारात इस साल भी बिना दुल्हन के ही बैरंग वापस लौट गई। दोनों गांव से हाथी-घोड़े पर सवार होकर बैंड-बाजा लेकर नाचते-गाते बारातियों के साथ निकलके दूल्हों को मायूसी ही हाथ लगी और दोनों गांव वाले जाते हुए अगले साल आज ही के दिन दोबारा बारात लाने की चेतावनी देकर लौट गए। यह परंपरा पिछले 140 सालों से चली आ रही है जिसे कजरी के दिन निभाया जाता है। परंपरा के अनुसार पड़ोस के गांव की दो लड़कियां जरई बोने तालाब में गई थी। इस दौरान दोनों के बीच कजरी गीत गाने का कंपटीशन शुरू हो गया और देखते ही देखते रात हो गई। इस कंपटीशन का सुबह तक कोई विजेता नहीं हुआ और मामला बराबरी पर छूटा। इसके बाद गांव के नवाब ने सुबह जाते हुए लड़कियों को विदाई के तौर पर कपड़ा दिया जिसके बाद से ये परंपरा चली आ रही हैं। गांव के लोगों का कहना है कि उनके जन्म से पहले से ये परंपरा चली आ रही है। हर साल इसी तरह मेला आयोजित होता है। मेले से पहले कजगांव में जगह जगह मंडप बनाए जाते हैं। वहीं घर घर महिलाएं शादी के गीत गाती हैं। रजोपुर में भी ऐसा ही होता है। वहां भी मंडप बंधता है। मंगल गीत होते हैं। मेले के दिन बाकायदा बारात उसी तरीके से निकलती है जैसे आम तौर पर शादी के लिए बारात निकलती है। बारात गाजे-बाजे के साथ पोखरे तक पहुंचती है। दोनों छोर के बाराती शादी के लिए ललकारते हैं और फिर सूर्यास्त के साथ ही शादी हुए बिना ही बारात वापस चली जाती है। 140 साल से ये परंपरा आपसी सौहार्द और भाईचारे के मनाई जा रही है।
रिपोर्ट- जौनपुर डेस्क