"केंद्र व राज्य सरकार सैकड़ों साल पुरानी विरासत को सहेजने, सवारने व जल संरक्षण के लिए पुरानें पोखरों व तालाबों को संरक्षित करने के कर ले लाख दावे, लेकिन जमीनी स्तर पर इन दावों की जमकर उड़ाई जा रही हैं धज्जियां"
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सिकन्दरपुर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। एक तरफ केंद्र व राज्य सरकार सैकड़ों साल पुरानी विरासत को सहेजने, सवारने व जल संरक्षण के लिए पुरानें पोखरों व तालाबों को संरक्षित करने के लाख दावे कर ले, लेकिन जमीनी स्तर पर इन दावों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। स्थानीय प्रशासन व खनन विभाग की मिलीभगत व अधिकारियों की लचर कार्यप्रणाली व बेपरवाह रवैये के चलते असामाजिक, अराजक तत्व व दबंग भूमाफिया लगातार इन पुराने पोखरों, तालाबों व गड़हियों को अपना निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर अतिक्रमण जारी रखे हुए हैं। प्रदेश की योगी सरकार द्वारा अवैध जमीन को कब्जा मुक्त व अतिक्रमण मुक्त बनाने की दिशा में लगातार बुलडोजर चलाया जा रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि फूलों व खुशबू की नगरी कहे जाने वाले नगर सिकन्दरपुर में प्राचीन धरोहरों व विरासतों को भू माफियाओं व अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए योगी बाबा का बुलडोजर आखिर कब चलेगा। तालाबों, गड़हियों व पोखरों पर घोर अतिक्रमण के चलते सदियों पुराने तालाब, गड़ही व पोखरे आज के आधुनिक दौर में वास्तविक स्वरूप खोने के साथ ही दिनों दिन सिकुड़ते व सिमटते जा रहे हैं।
फूलों व खुशबुओं की नगरी कहे जाने वाले नगर सिकन्दरपुर में भी अतिक्रमणकारियों के चलते पुराने तालाबों व पोखरों की स्थिति दिनोंदिन बहुत भयावह होती जा रही है। नगर स्थित सदियों पुराना किला का पोखरा भी पूरी तरह से अपने वास्तविक स्वरूप को खो चुका है। समयानुसार साफ सफाई ना होने की वजह से इस पोखरे का पानी पूरी तरह से काला पड़ गया है। कभी वह समय था, जब लोग इस पोखरे में स्नान किया करते थे और एक आज का समय है कि जानवर भी इस पोखरे का पानी पीने से कतराते फिरते हैं। आम लोगों की माने तो सदियों पूर्व राजा सिकन्दर द्वारा इस पोखरे का निर्माण कराया गया था। इसलिए यह पोखरा एक ऐतिहासिक पोखरा माना जाता है। आज के समय में किला का पोखरा के मूल स्वरूप का 50 फ़ीसदी हिस्से पर भू माफियाओं व अतिक्रमणकारियों का कब्जा बरकरार हैं। वहीं लोगों में यह भी चर्चा है कि कुछ लोगों द्वारा किला का पोखरा में मछली पालन का कार्य भी किया जा रहा है। दूसरे पोखरे की बात करें तो नगर स्थित चतुर्भुज नाथ का पोखरा है। इस पोखरे को भी सदियों पुराने पोखरे का तमगा प्राप्त है। इस पोखरे का पानी भी बिल्कुल काला हो चुका है। आज के दौर में हालात यह है कि कुछ लोगों द्वारा पोखरे के अंदर बढ़कर पोखरे की जमीन पर अतिक्रमण किया जा चुका है।
वही काफी संख्या में पोखरे के किनारे स्थित रिहायशी मकानों में बनें शौचालयों का पानी चतुर्भुज नाथ का पोखरा में खुलेआम बहाया जाता हैं, जिसके चलते यह पौराणिक पोखरा अपनी पवित्रता को पूरी तरह से खो चुका है। नगर के सिकन्दरपुर थाने के समीप जूनियर हाई स्कूल के पीछे स्थित सैकड़ों वर्ष पुरानी दूधिया पोखरी भी आज के दौर में घोर अतिक्रमण के चलते अपने पुराने अस्तित्व को समाप्त करने के कगार पर खड़ी है। नगर के जल्पा स्थान के पश्चिमी व दक्षिणी छोर पर डीह स्थान के समीप स्थित लगभग 200 वर्ष पुराना गड़बोड़ा गड़ही भी अपने अस्तित्व के साथ संघर्ष करती नजर आ रही है। इस गड़ही में पूरे कस्बे का बरसाती पानी व नाली का पानी बहुत लंबे समय से गिरता आया है। पर आज की स्थिति यह है कि अतिक्रमणकारियों ने इस पूरे गड़ही को मिट्टी से भर कर तथा प्लाटिंग काटकर रिहायशी मकानों के निर्माण हेतु बेचा भी जा रहा है। लोगों की माने तो गड़बोड़ा गड़ही भी अपने मूल स्वरूप का लगभग 75 फ़ीसदी हिस्सा खो चुकी है, जिस पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा बरकरार है।
नगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के पीछे स्थित गड़ही जो सैकड़ों साल पुरानी है। इसका भी अस्तित्व मिटने के कगार पर खड़ा है। इस गड़ही का 50 फ़ीसदी हिस्सा अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ़ चुका है, जहां पर अतिक्रमणकारियों द्वारा प्लाटिंग कर बेचने का कार्य किया जा रहा है। नगर के मैनापुर में महावीर स्थान के पीछे स्थित लगभग 100 साल पुरानी गड़ही पर भी अतिक्रमणकारियों की पैनी नजर बनी हुई है। स्थानीय लोगों की मानें तो गड़ही के अगल-बगल स्थित खेत मालिकों द्वारा गड़ही में मिट्टी डालकर अतिक्रमण किया जा रहा है। नगर के भीखपूरा मोहल्ला स्थित बूचड़खाना के बगल में सैकड़ों साल पुरानी गड़ही का भी अतिक्रमण के चलते इस गड़ही का अस्तित्व मिटता हुआ नजर आ रहा है। स्थानीय लोगों की मानें तो इस गड़ही के मूल स्वरूप का 60 फ़ीसदी हिस्सा अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ़ चुका है। नगर के मैनापुर धोबी मोहल्ला के समीप सैकड़ों साल पुरानी गड़ही भी अपना मूल स्वरूप दिन-ब-दिन खोते जा रही है। कारण की इस गड़ही का भी लगभग 50 फ़ीसदी हिस्सा अतिक्रमण की घोर चपेट में है।
नगर के मिल्की मोहल्ला स्थित चमटोला के समीप सैकड़ों साल पुरानी गड़ही भी अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ़ चुकी है। यह गड़ही भी अपने मूल स्वरूप का 60 फ़ीसदी हिस्सा खो चुकी है, जो दबंग अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। अगर पूरे नगर पंचायत क्षेत्र की बात करें तो वार्ड नंबर एक से लेकर वार्ड नंबर पंद्रह तक ऐसा कोई मोहल्ला नहीं है, जिसमें दो या चार गड़ही ना हो। लोगों का कहना है कि सैकड़ों वर्ष पहले बरसात व नाली के पानी के समुचित विकास के लिए इन घड़ियों का निर्माण कराया गया था इसका फायदा यह होता था कि लोगों का घर जलजमाव व जलभराव से सुरक्षित रहता था। आज यह स्थिति है कि पूरे नगर क्षेत्र में पानी के समुचित निकास ना होने की वजह से छोटी-छोटी नालियां बजबजाने के साथ ही उबाल मारने को तैयार बैठी हैं। कहीं-कहीं तो यह भी देखा गया है कि मुख्य मार्गों पर भी नालियों का गंदा पानी निरंतर बहता रहता है, जिसके चलते आए दिन बच्चों में विभिन्न प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ आने जाने वाले मुसाफिरों को अपने नाक पर रुमाल बांधकर आना जाना पड़ रहा है। अब यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि स्थानीय शासन प्रशासन इन भू माफियाओं व अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करता है कि नहीं।
रिपोर्ट- विनोद कुमार गुप्ता