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आइये जाने पूण्य सलिला माँ गंगा के अवतरण का त्यौहार "गंगा दशहरा" का महत्व एवं प्रासंगिकता

"धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा पर मां गंगा की पूजा करने से उनकी असीम कृपा होती हैं प्राप्त, इस पावन मौके पर पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाने में मनुष्यों को पाप से मिल जाती है मुक्ति"

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बलिया (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का त्योहार काफी महत्व रखता है। गंगा दशहरा यानी मां गंगा के स्वर्ग से धरती पर आने का दिन। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा पर मां गंगा की पूजा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है।इस पावन मौके पर पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाने में मनुष्यों को पाप से मुक्ति मिल जाती है। गंगा में लगाई एक डुबकी व्यक्ति के भाग्य को बदल सकती है। शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस बार 20 जून दिन रविवार को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाएगा। गंगा दशहरे पर गंगा में डुबकी लगाने के बाद दान करने का विशेष महत्व है। ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मुनष्य से जाने- अनजाने कई गलतियां हो जाती हैं। राह चलते किसी चींटी का पैरो तले दब जाना भी एक तरह का पाप माना जाता है। वाणी द्वारा किसी का दिल दुखाना भी पाप के अंतर्गत आता है। इतना ही नहीं पशु-पक्षियों को पिंजरे में रखना भी पाप होता है। ज्योतिष में पाप के बारे में कहा जाता है कि व्यक्ति जाने-अनजाने वाणी द्वारा, मन द्वारा और कर्म द्वारा पाप करता है। इन पापों से मु्क्ति पाने का सबसे अच्छा अवसर गंगा दशहरा का दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को हर तरह के पापों से मुक्ति मिल सकती है।

शुभ फल की प्राप्ति होती है। यूं तो साल भर गंगा घाट पर मां गंगा की पूजा-अर्चना और स्नान के लिए हजारों लोग आते हैं, लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा में डुबकी लगाने का विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर 'चोर-चोर' चिल्लाने लगी। महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने 'गंगा' की मांग की।

इस पर ब्रह्मा ने कहा- 'राजन तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो। परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी। मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है।इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए। महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका। अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी। इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों- युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है।

गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है। गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करें। अगर ये संभव ना हो सके तो बहती नदी या तालाब में भी स्नान कर सकते हैं। यदि इनमें से कुछ भी संभव ना हो पाए तो घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल डालकर हर- हर गंगे का जाप करते हुए स्नान करें। इसके बाद सूर्ये देव को जल अर्पित करें। घर में पूजा स्थान पर दीप जलाएं। देवी- देवताओं की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं। हर- हर गंगे और ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करें और इनकी अराधना करें। इसके बाद मां गंगा की आरती करें।आरती के बाद गरीब या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को खाने की सामग्री दान करें। आटा, दाल, नमक, चावल, घी व सब्जी आदि का दान कर सकते हैं।इसके अलावा फल भी दान कर सकते हैं। इस दिन व्रत करने का विशेष महत्व है। जो लोग व्रत नहीं कर पाते हैं वो दान करने के बाद भोजन ग्रहण कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा पर स्नान करने से और दान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रिपोर्ट- बलिया ब्यूरो लोकेश्वर पाण्डेय

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