"कोरोना की वजह से अप्रैल में पंचायत चुनाव के होने की हैं चर्चा, युवाओं के पोस्टरों से पटे चट्टी चौराहे"
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लखनऊ (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। यूपी में पंचायत चुनाव की तारीखों का ऐलान भले ही अभी नहीं किया गया हो लेकिन प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा गांव नहीं होगा, जहां इस ग्राम पंचायत चुनाव की चर्चा न हो। कोरोना की वजह से अप्रैल में पंचायत चुनाव के होने की ज्यादा चर्चा है। गांव के चौक-चौबारे, चौराहे व बिजली के खंभे आजकल चुनाव में ताल ठोकने को बेकरार युवाओं के पोस्टर से पटे पड़े हैं। सबसे ज्यादा पोस्टर जिला पंचायत सदस्य और प्रधान पद के भावी उम्मीदवारों के लगे हैं। इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा युवा हैं। जी हां 90 फीसद से ज्यादा। अगर 2015 के पंचायत चुनावों की बात करें तो गांव की राजनीति में युवाओं का दबदबा बरकरार रहा वहीं बुजुर्गों को पब्लिक ने दरकिनार कर दिया। निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में सबसे ज्यादा युवा ही चुने गए। जिला पंचायत सदस्य हो या बीडीसी या फिर गांव का प्रधान, हर पद पर युवा सोच बुजुर्गों पर भारी पड़ी। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष बनने वाले लोगों की सबसे अधिक संख्या 21 से 35 साल के उम्मीदवारों की रही।
यह कुल विजेताओं का 55.41 फीसदी था। कुल 40.54% पुरुष और 59.46% महिलाओं ने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी संभाली। वहीं 36 से 60 साल तक के लोग भी चुने गए, जिनका प्रतिशत 41.89 था और 60 साल के ऊपर के जिला पंचायत अध्यक्षों की बात करें तो उनका प्रतिशत महज 2.7 था। अगर इन अध्यक्षों की चल संपत्ति की बात करें तो 45.95 फीसदी की दौलत 10 लाख से अधिक थी। पांच से 10 लाख के बीच वाले 12.16 फीसद थे तो पांच लाख तक की चल संपत्ति वाले 36.49 फीसदी थें जबकि 5.41 फीसदी के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। अगर शिक्षा की बात करें तो जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए ज्यादातर उम्मीदवार ग्रेजुएट थे। इनका प्रतिशत 29.73 फीसदी था। पोस्ट ग्रेजुएट 24.32 फीसदी, इंटरमीडिएट 10.81 फीसदी, हाई स्कूल 8.11 फीसदी, जूनियर हाईस्कूल 9.46 फीसदी और प्राइमरी पास 12.16 फीसदी थे। निरक्षर और पीएचडी की भागीदारी बराबरी पर रही। दोनों 2.7-2.7 फीसदी पर रहे।
रिपोर्ट- लखनऊ डेस्क