अंदर मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक चलती रही और बेचारी मीडिया बाहर धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी करती रह गयी। शेर बनने की कवायद में अंत तक जुटी रही उ० प्र० पुलिस
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उनका यही कार्यक्रम बलिया में रहा और अंदर जाने से रोके जाने पर खबर के मस्ताने प्रशासन विरोधी नारे लगाते हुए पुलिस को अपनी हेकड़ी दिखाते रह गए। समीक्षा बैठक में कौन-कौन से मुद्दे शामिल रहे, बाबा ने किस अधिकारी पर अपनी आंखें तरेरी और किस अधिकारी की पीठ थपथपाई शाम तक इसकी जानकारी किसी मीडिया वाले को नहीं हुई। सूचना विभाग की प्रेस नोट से मुख्यमंत्री की खबर मीडिया को मिली और वह भी काफी देर बाद...। जिला अस्पताल में क्या हुआ, इसकी जानकारी तो कुछ पत्रकारों को हो गई कि निरीक्षण में सब कुछ ठीक मिला। सबसे पहले वह इमरजेंसी में पट्टी करा रही महिला से चोट लगने का कारण पूछे, इस पर महिला ने गिरने से चोट लगने की बात कही। फिर सीएम ने पूछा डॉक्टर साहब देखे हैं कि नहीं तो जवाब मिला देखे हैं।
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इसके बाद सीएम योगी ने इमरजेंसी वार्ड का निरीक्षण कर मरीजों से डॉक्टर के देखने व दवा आदि मिलने के संबंध में पूछताछ की जिस पर मरीजों ने डॉक्टरों द्वारा समय समय पर देखने और दवा मिलने की बात कही। इसके बाद सीएम मेडिकल वार्ड का निरीक्षण करने पहुंचे और यहां भी मरीजों से पूछताछ की। सीएम ने आइसोलेशन वार्ड का भी निरीक्षण किया और सीएमएस डॉ. बी पी सिंह से अस्पताल में कम मरीजों के होने के बाबत सवाल भी किया जिस पर सीएमएस ने बताया कि शनिवार रविवार को विशेष लॉक डाउन के साथ ही 26 जुलाई तक बलिया में लगे लॉक डाउन के कारण मरीज कम हैं। मतलब यहां सब कुछ ठीक-ठाक रहा। यहां से वह बसंतपुर फिर वहां से वाराणसी के लिये हेलीकॉप्टर से रवाना हो गए। लेकिन इस समय तक किसी भी मीडिया वाले को तनिक भी खबर नहीं हुई कि समीक्षा बैठक में आखिर हुआ क्या।
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हो ये भी सकता था कि सब कुछ निपटाने के बाद सीएम मीडिया से मुखातिब होते हुए सारी चीजें ब्रीफ कर देते लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। अलबत्ता बड़े अधिकारियों की बॉडी लैंग्वेज प्रशासनिक स्तर पर बड़े फेरबदल का संकेत जरूर देती रही। कल क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में लेकिन मुख्यमंत्री से मीडिया को रूबरू न कराना कई सवाल पैदा कर गया। क्या बलिया में कोरोना की रोकथाम में प्रशासन की विफलता, बाढ़ में डूबने- उतराने के कगार पर खड़ा बलिया, ईओ मणिमंजरी राय प्रकरण पर मुख्यमंत्री को मीडिया के सामने नहीं आना चाहिए था, ये सभी सवाल यक्ष प्रश्न बनकर उभरे हैं। आवाज तो यहां तक उठ रही है कि सीएम को बंद कमरे में पांच लोगों से ही बात करनी थी तो ये काम अधिकारियों को लखनऊ बुला कर अथवा वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी संभव था। बहरहाल मीडिया के सामने न आने के पीछे उनकी जो भी मजबूरियां रही हों लेकिन जनता की आवाज को कैसे दबाया जाय जो कह रही कि आपदा में अवसर आखिर मिल ही गया।
रिपोर्ट- दीपक ओझा