Left Post

Type Here to Get Search Results !

रेप के आरोप में 20 साल से जेल में बंद था यें शख्स, मां-बाप और दो बड़े भाई खोने के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया निर्दोष, आइए जाने यें दर्दनाक सच

"आगरा की सेंट्रल जेल में बंद विष्णु 20 साल से उस घिनौने अपराध की सजा काट रहा है जो उसने किया ही नहीं"

खबरें आजतक Live
नई दिल्ली (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। 'ज़िंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते।' एक पुरानी हिंदी फिल्म के गाने की यह लाइन एक बार फिर तरोताजा हो गई है। ललितपुर के रहने वाले विष्णु के जीवन को उकेरने के लिए इस गाने की यह एक ही लाइन काफी है। आगरा की सेंट्रल जेल में बंद विष्णु 20 साल से उस घिनौने अपराध की सजा काट रहा है जो उसने किया ही नहीं, लेकिन जब तक विष्णु की बेगुनाही साबित होती तब तक वो अपना सब कुछ लुटा चुका था। एक-एक कर उसके मां-बाप चल बसे। दो बड़े शादीशुदा भाई भी यह दुनिया छोड़ गए। आज जब इलाहबाद हाईकोर्ट ने विष्णु को रिहा करने का आदेश जारी किया है तो एक सवाल जरूर उठ रहा है कि इससे पहले इस केस में क्या हो रहा था। विष्णु बेहद गरीब परिवार से था. इस केस को लड़ने के लिए उसके परिवार के पास न तो पैसे थे और ना ही कोई अच्छा वकील। लेकिन सेंट्रल जेल आगरा आने के बाद यहां उसे जेल प्रशासन की मदद से विधिक सेवा समिति का साथ मिला। समिति के वकील ने हाईकोर्ट में विष्णु की ओर से याचिका दाखिल की। सुनवाई चली और एक लम्बी बहस के बाद विष्णु को रिहा कर दिया गया।

हालांकि खबर लिखे जाने तक जेल में विष्णु की रिहाई का परवाना नहीं पहुंचा है। 20 साल में पल-पल ऐसे ही बदली विष्णु की जिंदगी। विष्णु का एक भाई महादेव उसे जेल में मिलने आता है, लेकिन कोरोना के चलते उससे भी मुलाकात नहीं हो पा रही है। लेकिन महादेव के जेल आने पर विष्णु हमेशा ठिठक जाता है। क्योंकि चार अपनों की मौत की खबर भी महादेव ही लाया था। सबसे पहले 2013 में उसके पिता की मौत हो गई। एक साल बाद ही मां भी चल बसी। उसके बाद उसके दो बड़े भाई भी यह दुनिया छोड़कर चले गए। विष्णु पांच भाइयों में तीसरे नंबर का है। सोशल एक्टिविस्ट नरेश पारस ने विष्णु की आवाज़ उठाईआगरा के रहने वाले सोशल और आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस ने इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को एक पत्र लिखा है। नरेश पारस का कहना है कि विष्णु के मामले में पुलिस ने लचर कार्रवाई की।

सही तरीके से जांच नहीं की गई, जिसके चलते विष्णु को अपनी जवानी के 20 साल जेल में बिताने पड़े। जब विष्णु जेल में आया था तो उसकी उम्र 25 साल थी। आज वो 45 साल का होकर जेल से बाहर जा रहा है। दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने के साथ ही विष्णु को मुआवजा दिया जाए। मुआवजे की रकम पुलिसकर्मियों के वेतन से काटी जाए। किसी ने सच ही कहा है जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम। जेल में रहने के दौरान विष्णु मेस में दूसरे बंदियों के लिए खाना बनाता है। इतने साल में वो एक कुशल रसोइया बन चुका है। साथी बंदियों का कहना है कि काम का वक्त हो या खाली बैठा हो, विष्णु सिर्फ एक ही गाना गाता है, ...जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम। विष्णु का कहना है कि इसी गाने में उसकी ज़िदगी का फलसफा छिपा हुआ है।

रिपोर्ट- नई दिल्ली डेस्क

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
image image image image image image image

Image   Image   Image   Image  

--- Top Headlines ---