बलिया (ब्यूरों) साल के बारह महीनों में रमजान का महीना मुसलमानों के लिए खास मायने रखता है। यह महीना संयम और समर्पण के साथ खुदा की इबादत का महीना माना जाता है जिसमें हर आदमी अपनी रूह को पवित्र करने के साथ अपनी दुनियादारी की हर हरकत को पूरी तत्परता के साथ वश में रखते हुए केवल अल्लाह की इबादत में समर्पित हो जाता है। जिस खुदा ने आदमी को पैदा किया है उसके लिए सब प्रकार का त्याग मजबूरी नहीं फर्ज बन जाता है। इसीलिए तकवा लाने के लिए पूरे रमजान के महीने रोजे रखे जाते हैं। रमजान के महीने में की गई खुदा की इबादत बहुत असरदार होती है।
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इसमें खान-पान सहित अन्य दुनियादारी की आदतों पर संयम कर जिसे अरबी में 'सोम' कहा जाता है आदमी अपने शरीर को वश में रखता है साथ ही तराबी और नमाज पढ़ने से बार-बार अल्लाह का जिक्र होता रहता है जिसके द्वारा इंसान की आत्मा (रूह) पाक-साफ होती है। इंसान गलतियों का पुतला भी होता है। अतः अपनी गलतियों को सुधारने का मौका भी रमजान के रोजे में मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है। इसीलिए इन दिनों जकात देने का खासा महत्व है। जकात का मतलब है अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत गरीबों में बांटना।
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वस्तुतः जकात देने से आदमी के माल एवं कारोबार में खुदा बरकत करता है। इस्लाम में रोजे, जकात और हज यह तीनों फर्ज हैं मजबूरी नहीं। अतः 12 साल से ऊपर के बालिक रोजा रखना अपना फर्ज समझते हैं। ईद से पहले फितरा दिया जाता है जिसमें परिवार का प्रत्येक व्यक्ति ढाई किलो के हिसाब से गेहूं या उसकी कीमत की रकम इकठ्ठा कर उसे जरूरतमंदों में बांटता है। रमजान माह के दौरान हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था।
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अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को 3 अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है। रमजान का महीना एक गर्म पत्थर से मायने रखता है। उस जमाने में अरब में आज से भी भीषण गरमी होती थी। अतः गरमी से तपते पत्थर से नसीहत लेते हुए, कि जैसे यह सूरज की किरणों से तप रहा है, वैसे ही तुम अल्लाह की इबादत में तप कर अपने तन-बदन एवं रूह को पाक-साफ बना लो।
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इस्लाम धर्म के अनुसार माहे रमजान का बहुत महत्व है, रमजान महिने के पूरे रोजे रखना हर मुसलमान का फर्ज है, रोजे का अर्थ होता है रूकना, परहेज करना और दूर रहना, क्योंकि रोजदार सुबह सूरज निकलने से पहले और सूरज डूबने तक खाने-पीने और दूसरी तमाम बुराईयों से परहेज करता है। अगर कोई रोजदार इस समय के दौरान कुछ खा, पी ले या दूसरी ख्वाहिश पूरी कर ले तो उसका रोजा टूट जाता है। ज्ञात हो कि इसी मुकद्स माह में अल्लाह की पवित्र किताब कुरान पैगंबर हजरत मोहम्मद पर उतारी गई जिसके द्वारा आम लोगों की भलाई और बेहतरी का संदेश दिया गया। साथ ही माहे रमजान के पहले रोजे को गौसे आजम की यौमे पैदाईश भी है।
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इसी के साथ 17 वें रोजे, 21 वें रोजे एवं 27 वे रोजे का रमजान के महिने में विशेष महत्व है। दौड़-भाग और खुदगर्जीभरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।इस माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है।
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बदले में अल्लाह अपने उस इबादतगुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया कोविड 19 की वैश्विक महामारी से जूझ रही है। पूरे भारत में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस का पालन किया जा रहा है। इस वर्ष पूरे मुल्क के सज्जादा नशीनों, मुफ्तियों, आलिमों ने मुस्लिम धर्मावलंबियों से माहे रमजान की इबादत घरों में ही रहकर करने की अपील की है तथा कहा है कि रोजेदार पूरे इत्मीनान, सुकुन और सब्र के साथ अपने-अपने घरो में अपनी इबादत करें और घर में ही सेहरी एवं इफ्तारी का इंतजाम करें और शासन- प्रशासन के निर्देशों का पालन करें ।
रिपोर्ट- संवाददाता डॉ ए० के० पाण्डेय
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