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चुनाव में शिक्षकों के मौत का मामला: मानवता के विरुद्ध निर्वाचन आयोग ने पार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा, प्रशासन की यें लीपापोती बना एक यक्ष प्रश्न

"माननीय उच्च न्यायालय के उस आदेश के कारण शासन प्रशासन द्वारा किया जाने वाला लीपापोती कार्यक्रम नहीं है, जिसमें मृतकों को देने के लिए कहा गया था एक करोड़ से अधिक की धनराशि"
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बलिया (उत्तर प्रदेश)। चुनाव ड्यूटी के दौरान कोरोना से संक्रमित और मृत 706 शिक्षकों की दी गई सूची में से निर्वाचन आयोग ने मात्र तीन को संक्रमित हो कर मरते हुए माना हैं। इनके मानक का आधार यह है कि जो संक्रमित लोग चुनाव ड्यूटी के दिन मरे हैं, उन्हीं को संक्रमण से मरा माना जाएगा। इस श्रेणी में मात्र 3 लोगों को चुनाव आयोग ने सम्मिलित किया है। यक्ष प्रश्न यह है कि जो चुनाव के दिन संक्रमित थे वहीं चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमण से मर सकते हैं ऐसे (जो पहले से संक्रमित थे )लोगों की ड्यूटी लगाकर मतदान स्थल पर क्यों भेजा गया? क्या इससे संक्रमण नहीं फैला? क्या यह माननीय उच्च न्यायालय के कोविड नियमों के पालन के आदेश का शासन स्तर पर उल्लंघन नहीं है। जो लोग ड्यूटी के दौरान, प्रशिक्षण के दौरान और ब्लॉकों से बक्सा उठाते समय अनियंत्रित भीड़ के कारण संक्रमित हुए और बाद में काल कवलित हुए वे इस मानक में क्यों नहीं आते। क्या यह माननीय उच्च न्यायालय के उस आदेश के कारण शासन प्रशासन द्वारा किया जाने वाला लीपापोती कार्यक्रम नहीं है, जिसमें मृतकों को एक करोड़ से अधिक की धनराशि देने के लिए कहा गया है। 

क्या यह मानवता के विरुद्ध संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं है। ऐसा कहना है बलिया जनपद के सुखपुरा इंटर कॉलेज में समाज शास्त्र के प्रवक्ता डॉ अशोक पाण्डेय का। डॉ अशोक पाण्डेय ने शिक्षक, कर्मचारी तथा अन्य संगठनों पर भी गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि कहां सो रहे हैं तथाकथित शिक्षक कर्मचारी संघ और संगठन तथा वे लोग भी जो पश्चिम बंगाल में कार्यकर्ताओं के प्रति हुई हिंसा के लिए रोज उबाल लेते हैं। डॉ पाण्डेय नें कहा कि मेरी इन बातों से लोग कतराते हैं, बुरा मानते हैं और किनारा कर लेते हैं। लेकिन कलम का सिपाही होने के नाते अपने शिक्षक धर्म का निर्वाह कर रहा हूं चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा। ऐसे शिक्षक कर्मचारी संगठनों को आगे से शिक्षक कर्मचारी हितों की लड़ाई करने की बातें करना बंद कर देना चाहिए।उन्होंने शासन स्तर से जारी पत्र पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि ध्यान से देखिए इस सरकारी पत्र को और हो सके तो गर्व कीजिए कि आप उत्तर प्रदेश की तथाकथित संवेदनशील जनता हैं। बताते चले कि डॉ अशोक पाण्डेय अपने बेबाक अंदाज व टिप्पणी के लिए जाने जाते है।

रिपोर्ट- बलिया ब्यूरो लोकेश्वर पाण्डेय

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