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यूपी के 1 लाख से अधिक शिक्षामित्र देश में सबसे बड़े अभागे, 6 साल से नहीं बढ़ा मानदेय, जानें अन्य राज्यों में शिक्षामित्रों की क्या है स्थिति

"कई राज्यों में संविदा शिक्षक बन गए हैं पूर्ण शिक्षक, तो तमाम राज्यों में इनका बढ़ गया हैं मानदेय, लेकिन यूपी के शिक्षामित्र साल में 11 महीने दस हजार रुपये मानदेय पर संवारने में लगे हैं बच्चों का भविष्य"

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प्रयागराज (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में दो दशक से अधिक समय से बच्चों को पढ़ा रहे उत्तर प्रदेश के एक लाख से अधिक शिक्षामित्र पूरे देश में सबसे अभागे हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत दो दशक पहले पूरे देश में तकरीबन 7.5 लाख संविदा शिक्षक (शिक्षामित्र) रखे गए थे। इस दौरान कई राज्यों में ये संविदा शिक्षक पूर्ण शिक्षक बन गए हैं तो तमाम राज्यों में इनका मानदेय बढ़ गया है, लेकिन यूपी के शिक्षामित्र साल में 11 महीने दस हजार रुपये मानदेय पर बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हैं। पिछले तकरीबन छह साल में इनके मानदेय में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है। महाराष्ट्र में बस्तीशाला शिक्षक, हिमाचल में पैट (प्राइमरी असिस्टेंट टीचर) और मध्यप्रदेश में शिक्षाकर्मी के रूप में नियमित शिक्षक बना दिया गया है। बिहार में 2006 में ही समायोजित कर दिया गया था और फिलहाल इन्हें 35 से 48 हजार रुपये तक मानदेय मिल रहा है। वर्तमान में राजस्थान में नौ और 18 साल की सेवा पूरी कर चुके शिक्षा अनुदेशकों को क्रमश 29600 और 51000 मासिक पारिश्रमिक जबकि हरियाणा में गेस्ट टीचर के पद पर कार्यरत संविदा शिक्षकों को 34580 रुपये मिल रहे हैं।

पंजाब में 11 हजार मानदेय मिल रहा है और 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले अस्थाई शिक्षकों को नियमित करने की प्रक्रिया चल रही है। उत्तराखंड में शिक्षामित्रों को 20 हजार तो पश्चिम बंगाल में 15 हजार मानदेय दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2017 को 1.37 लाख शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन को निरस्त कर दिया था। उसके बाद शिक्षामित्रों ने 12 माह का मानदेय देने, सेवाकाल 62 वर्ष करने, मानदेय बढ़ाने, निशुल्क चिकित्सा सुविधा आदि मांगों को लेकर आंदोलन किया था। जिसके बाद प्रदेश सरकार ने अगस्त 2017 में मानदेय 3500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार कर दिया था। पिछले छह साल में केंद्र सरकार ने आठवीं तक के स्कूलों में निशुल्क बंटने वाले मिड-डे-मील की परिवर्तन लागत (कन्वर्जन कास्ट) में 32 फीसदी तक की वृद्धि कर दी है। प्राथमिक विद्यालय के एक बच्चे पर 5.45 जबकि उच्च प्राथमिक में 8.17 रुपये परिवर्तन लागत के लिए मिल रहे हैं। लेकिन शिक्षामित्रों का मानदेय नहीं बढ़ा। 2017 में सीएम योगी ने उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में शिक्षामित्रों की समस्याओं के समाधान के लिए हाईपावर कमेटी गठित की थीं।

लेकिन कमेटी की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हो सकी है। जुलाई 2017 में शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त होने के बाद दस हजार मानदेय निर्धारित किया गया था, परंतु छ: वर्ष से कोई वृद्धि नहीं हुई है। शिक्षामित्र आखिर कब तक शिक्षक के बराबर कार्य करने के बाद भी दस हजार मानदेय में ही जीवन यापन करेंगे। फैक्ट फाइल की बात करें तो 26 मई 1999 को यूपी में शिक्षामित्र योजना लागू हुई। अक्तूबर 2005 में मानदेय 2250 रुपये से बढ़कर 2400 हुआ। 15 जून 2007 को मानदेय 2400 रुपये से बढ़कर 3000 हुआ। 11 जुलाई 2011 को शिक्षामित्रों के दो वर्षीय प्रशिक्षण का आदेश। 23 जुलाई 2012 को कैबिनेट ने समायोजन का निर्णय लिया। 19 जून 2014 को प्रथम बैच में 60442 शिक्षामित्रों का समायोजन। 8 अप्रैल 2015 को 77075 शिक्षामित्रों का समायोजन किया गया। 6 जुलाई 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन पर रोक लगाई। 12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समायोजन निरस्त किया। 7 दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन को गैरकानूनी ठहराया। वहीं अगस्त 2017 में मानदेय 3500 से बढ़कर 10 हजार रुपये किया गया।

रिपोर्ट- प्रयागराज डेस्क

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